नाता प्रथा
साधारणतया पति की मृत्यु के पश्चात विधवा स्त्री का
विवाह(नाता) के रूप में किसी नज़दीकी रिश्तेदार के साथ करवा दिया जाताहै । इस
पुनर्विवाह को आम भाषा में पल्ले लगाना अथवा नाता करना कहा जाता है ।
यह विवाह समाज और पंच पटेलों की दृष्टि से मान्य है । इस
प्रथा में मृत पति की पत्नी का, उसके ससुराल वालों के
द्वारा परिवार के किसी अन्य सदस्य के साथ नाता (पल्ले बांधना) किया जाता है । इस
प्रकार के विवाह में पंडित या पुरोहित आवश्यक नहीं होता है । भावी पति द्वारा
स्त्री के हाथों में चूड़ी पहनाई जाती है और लड़की वाले पति के परिवार वालों से
निश्चित रकम लेते हैं ।
कई बार तो पति के जीवित रहते हुए भी विवाहित लड़की किसी
अन्य के नाते चली जाती है । नाते से उत्पन्न संतान वैध मानी जाती है । नाते से
प्राप्त रकम का बँटबारा मृत पति के परिजनों व ससुराल वालों के बीच होता है । पंचों
द्वारा इस तरह के नातों में एक कर के रूप में अलग-अलग निश्चित की गयी राशि ली जाती
है ।
इतिहास में बीकानेर राज्य की राजकीय बहियों में प्राप्त 'रीढ़ का कर' इसी प्रकार का कर था ।
पुनर्विवाह के लिए निश्चित की गयी रकम ले लेने के पश्चात
मृत पति के परिवार वालों द्वारा संबंध विच्छेद के प्रतीक के रूप में 'बैर का कागद' दिया जाता है । इसके
साथ ही विधवा स्त्री का दायित्व एक परिवार से हटकर दूसरे परिवार पर आ जाता है ।
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