मांच का प्रथम युद्ध
दूलहराय आहत होकर अपने घोड़े से
युद्ध-भूमि पर गिर पड़ा । राजा
स्वयं युद्ध में मूर्छित हो गया । राजा को मूर्छित देखकर मीणों ने बड़ी खुशियाँ
मनाई । विजयी
मीणों ने मदिरा का पान किया तथा जीत का जश्न मनाया । दूलहराय की परास्त सेना में मोरा राजा
की सेना भी सम्मिलित थी ।
मूर्छित अवस्था में राजा दूलहराय को
अपनी कुलदेवी जमवाय माता के दर्शन हुए जमवाय माता ने राजा
को कहा- "डरो मत चढ़ाई करो । तुम्हारी मृत सेना पुनः सजीव हो जायेगी और
तुम्हारी जीत होगी ।" कुलदेवी से ऐसा सुनकर दूलहराय मूर्छित अवस्था से उठा और
उसने माता के दर्शन किये । देवी की प्रेरणा से उत्साहित होकर उसने दुर्ग पर आक्रमण
कर दिया जहाँ कि मीणें विजयोल्लास में मदिरा पान कर जश्न मना रहे थे । नशे में चूर
मीणें दूलहराय के इस आकस्मिक आक्रमण का मुकाबला नहीं कर सके । भयभीत होकर वे
तितर-बितर हो गए । परिणामतः
दूलहराय का मांच के दुर्ग पर अधिकार हो गया ।
दूलहराय ने अपने ईष्ट देव व पूर्वज
भगवान् राम के नाम पर मांच का नाम रामगढ़ रखा ।युद्ध-भूमि में जहाँ राजा मूर्छित
हुए थे, वहीँ पर उन्होंने जमवाय माता का मंदिर
बनवाया । वर्तमान
जमवारामगढ़ जयपुर से लगभग 34 कि.मी.
उत्तर पूर्व में स्थित है ।
संदर्भ
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मुनि मगन
सागर: मीन पुराण भूमिका पृष्ठ 71
2.
राघवेंद्रसिंह
मनोहर: राजस्थान में खँगारोतों का इतिहास पृष्ठ 3-4
3.
हनुमान
प्रसाद शर्मा: नाथावतों का इतिहास पृष्ठ 16-17
4.
जयपुर
वंशावली पृष्ठ 16-17
5.
कर्नल
टॉड: एनाल्स एण्ड एंटीक्विटिस ऑफ़ राजस्थान ज़ि.2
6.
चारण
रतनू: राजस्थान का इतिहास
7.
जगदीश
सिंह गहलोत: कछवाहा राज्य का इतिहास पृष्ठ 50
8.
हनुमान
प्रसाद शर्मा: नाथावतों का इतिहास पृष्ठ 16-17
9.
जगदीश
सिंह गहलोत: कछवाहा राज्य का इतिहास पृष्ठ 50
10.
हनुमान
प्रसाद शर्मा: नाथावतों का इतिहास पृष्ठ 16
11.
कर्नल
टॉड: एनाल्स एण्ड एंटीक्विटिस ऑफ़ राजस्थान ज़ि.2
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ReplyDeleteCan you tell from where can i get meenpuran ( munimagan sagar)pdf online or book.
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